Tuesday, July 14, 2020

भूली बिसरी यादें।Holidays at patengli

Today I would like to share our (Gupta family ) childhood memories of the life in the orchard at Mashobra.
Many of my relatives, friends,school and College classmates will who have visited this place in holidays or NSS Camp will be able to relate to it easily.
Others and specially who are young urban elite will get an idea of the village life in outskirts of Shimla.
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    Holidays at PATENGLI
           भूली बिसरी यादें

अक्सर याद आते हैं वो दिन जो हमने पटेंगली में गुज़ारे।
वह घर और बगीचा जिसे पिताजी और बड़े  भाई देवजी ने अपनी मेहनत और पसीने से थे संवारे।
वह लकड़ी का चार मंजिला मकान
और सबसे ऊपर  ग्लेज्ड शीशों की खिड़कियां
जिसको बनाने में बहुत दिन थे लगे।
जब भी मौका लगता,छुट्टियां होती
हम वहां जा कर रहते।
सुबह सुबह उठ कर  खिड़कियां खोल कर
ताज़ी हवा और की सुंदरता का
आनंद लेते ,
पक्षियों की चहक और फूलों की खुशबू से
दिन की शरूआत करते।

मातीजी सुबह उठ कर
बैदनी जी के साथ
 गाय भैंसों कि  निगरानी करती
और फिर रसोई में जुट जाती।
पिताजी लंबी सैर करने जाते
 झोला भर कर चिलकिट्टू लाते
और रास्ते में  पानी की पाइप
बायो गैस का इंतजाम
या सड़क ठीक करवाने का प्लान बनाते,
और हम बच्चे घर की सफाई में जुट जाते।

 हमाम में पानी गरम कर के सब नहाते
पिता जी की पूजा की तैयारी होती,
ताज़े फूलों की खुशबू
पूजा का कमरे में बिखर जाती।
हम खेत में जा कर लाते,
ताज़ा धनिया पुदीना,मूली और  मेथी,
नाश्ते में गरम मेथी मूली के परांठे
ताज़े माखन के साथ खाते
पिताजी पीते थे ताज़ी लस्सी
घी तेल के मामले में थे वो fussy।

फिर दिन की मेहनत शुरू होती,
पिताजी हाथ में दस्ताने पहन
पेड़ों की pruning करते
कभी कभी हाथों में छाले पड़ जाते।
हम भी वहां जा कर
कटी हुई टहनियों को इकट्ठा कर के
उन्हें तरकीब से एक जगह रखते
हीरू माली आकर उन्हें उठा कर
स्टोर रूम में लेजाकर रखते।
हम स्ट्रॉबेरी के खेत में
जी भर कर खाते और शिमला के लिए भी लेे आते
मटर के साथ एक ही खेत में भुट्टे थे उगते
ग्राफ्टिंग वाले पेड़ पर एक डाली पर आडू
और दूसरी पर बादाम थे उगते।
कई तरह के सेब,नाशपाती,प्लम
अप्रिकॉट, अखरोट,परिसीमन भी लगते।

शुरू शुरू में पानी लेने बौड़ी में जाते
वीर बहादुर हमें हैं याद बहुत आते
 जो चरोटू भर भर कर घर लाते।
उसके नीचे जाकर था
 कल कल बहता, बड़े झरने का पानी,
जहां पर हम कपडे बाल्टी और साबुन
साथ में दबोटनी लेे कर जाते,
बड़े पत्थर पर भी पीट पीट कर कपडे धोते
साथ में ज़ोर ज़ोर से गाने गाते
फिर उन्हें निचोड़ कर सामने वाले
बगीचे में सूखने डाल देते
वहां थी आखे, कशमल और तेजफल
की झाड़ियां
हम जी भर के दातुन करते
आखे और कशमल खाते
कभी किताबें ले जा कर
छुट्टियों का काम पहाड़ी में करते।
नरगिस के फूलों का गुलदस्ता बनाते।
काम के साथ मज़े भी खूब लेते।
बहुत से रिश्तेदार,और दोस्त वहां आते
ज़िन्दगी का मज़ा दो दिन में ले जाते।
सामने था शिल्डू का गांव
जहां दिन भर रेडियो पर लगे
 हिंदी गाने सुनाई देते।
कभी कभी गांव वाले गोबराई मानते
शिद्दू, पटंद्दे हलवा हमे भी खिलाते।

 माता जी रसोई में चूल्हे पर दाल चढ़ाती
 उनके हाथ का स्वादिष्ट था खाना,
भड्डू में पकी दाल और कढ़ी की खुशबू
मक्की की रोटी और दाल में घी का तड़का।
चावल की महक भूख को कर देती थी दुगना।
बगीचे में काम कर रहे गोरखों का
आ कर लाइन में बैठना
और हमारा उनकी प्लाटों में दाल
और मग में गुड़ की चाय डालना।
उनके साथ हंसी मज़ाक और गप्पे लड़ाना।

खाना खा कर करते थे आराम
फिर अलमारी से  किताबे और नावल ले कर
पढ़ते पढ़ते हi जाती थी शाम।
वैद जी आकर करते गपशप
और हुक्के के साथ आराम।
शिमला से सामान लेकर आते लच्छी राम
त्रिशूल की ब्रेड, पेस्टरी और ज़रूरी सामान।
याद आता है  देवजी का बनाया पोल्ट्री फार्म
छोटे छोटे चूजों को काट कर हरा लहसुन खिलाते छोटे छोटे संगमरमर भी उन्हें रास आते
उनकी निहार कर मिलता बहुत आराम।

याद है बड़े वाले हॉल में थी अलमारियां,
जिसमें होती प्रूनिंग की कैंचियां
और कई औजार और आरियां।
पिता जी के कमरे की स्पेशल अलमारियां
 जिसमें थी दवाइयां और चूर्ण की गोलियां।
खांसी होती तो लगता था throat paint
 चोट लगती थी तो लगती थी टिंक्चर आयोडीन
पेट दर्द के लिए कामधेनु जल।
मगर सेहत का राज था
ताज़े सब्जी और फल।
हीरू जी के कमरे में रखा था टेलीफोन,
सबसे बात करके मिलता था सुकून।
कभी कभी ओवन में
बनाते हम केक और नानखताई
नवीन जी ने वहां हम
बांसुरी की बहुत धुनें हैं सुनाई।
रेडियो लगा कर खबरें हैं सुनाई।
रसोई की छत पर बैठ कर
मक्की चना मूंगफली है खूब खाई।
कोदरू का घर उनके दंगर
और खलिहान की भी याद है आयी।

जब इकठ्ठे होते तो क्रिक्रेट भी खेलते थे हम।
कभी चाईनीज़ कभी लूडो खेलते थे हम
शरारतें भी करते मगर मेहमाननवाजी में भी ना थे कम।
 
बरामदे से दूरबीन ले कर
देखते थे हम लक्कड़ बाज़ार का घर
सामने था मझधार का गांव
सुंदर सुंदर श्यू शेप के खेत,
और लच्छी राम जी का घर।
सर्दी की रातों में हवा की साएं साएं
और रात को झरने की आवाज़
सुन कर लगता था डर।

याद आते है अब वह फूल पौधे और फल
वह पगडंडियां और वो घर
वह घर जिसमें बाहर था गांव लेकिन अंदर से था शहर
टीवी, सोफ़ा, पलंग
और नए बाथरूम में चमकते नल।
याद आता है तारापुर
फरीदकोट का हाता और
घर से तलाई तक
बीस मिनट की चढ़ाई।
 वहां बस की इंतज़ार तक चाय और पकोड़े खाना
बस ना मिले तो
बर्फ पर चल कर शिमला पैदल जाना।
बीत गए वो दिन बदल गया ज़माना
नहीं होता अब हमारा आना जाना।
ना चढ़ेंगे वह चढ़ाई,ना चूल्हे पर कढ़ाई।
दबी दबी सी हैं ख्वाहिशें मन में रह गई।

सुना है हमारे घर के सामने अब है बन गया
होटल fortune select cedar trail
ज़माना है नया और माहौल भी नया।

Sunday, May 10, 2020

Yaad aata hai dharamsala ka aangan
Charotu wali rasoi
aur chulha
Tranko ka kamra
aur bukharcha
Woh galgal aur amrood ke boote.

Woh chabiyon ka guchha aur almari ke neeche chappal joote aur kaala chhaata.

Woh bibi ji ke haath ka lungru ka madra
Woh galgal ki chutney aur badiyon ka khatta.
Woh gol gappe aur tikki ka thela,
Woh war memorial ka tank aur cheel ke ped.

Yaad aata hai chungi ke pas sabzi lene jaana,
Adde par bhune chane le kar khana
Woh tar par kapde sukhana
Aur manjiyon ko kasna.

Yaad hain woh biscuit ke dabbe
Aur gokul ji ka wahan baar baar jaana.
Yad hai Madhu didi ka Kotwali se aana
Sabjiyon se fridge ko bharna.
Yaad hain Vivek ka TV ko chhedna
Kanika aur Sonali ki
Darwaza band kar ke khusarpusar,
Sachin aur Vivek ka darwaze ko peetna.
Carrom board aur chinese checker khelna.
Yaad hai gullu ke haath ke
chulhe mein bhune aalu.
Yaad hai sari massi  ke chutkule
Baade mama ki ka sair karte hue aana.
Sunday ko upar satsang mein jaana.
Woh beet gaya zamana.
Ab wahan jaane ka nahin koi bahana.

Tuesday, April 7, 2020

Sweat dreams

Life is bound with limitations
but the dreams soar the spirits
high in the sky.
We wander in our dreams
to our favourite destinations.
Or find ourselves in company of those whom we can't meet in real life.
So remember the Almighty before you sleep
Have a sound sleep with sweet dreams
and when you are awake at the dawn
May your dreams come true.

Monday, April 6, 2020

मैं और मेरा अंतर्मन

मैं और मेरा अंतर्मन
घर की चारदीवारी में 
कभी अकेलापन महसूस न होने देता
यह मेरा में है जो कभी
मायूस नहीं होने देता।
ना ज़रूरत है टीवी की
ना दोस्तों की महफ़िल की
इस मन के साथी ने
जाने क्या जादू चलाया है
मालूम नहीं कब ढल जाता है दिन
और हो जाती है शाम।


काम चाहे कुछ भी करूं
हाथ में ऊन और सिलाई लूं
या झाड़ू पोचा सफाई करूं
खाना बनाऊं या बर्तन घिसाई करूं
यह मन मुझको साथ लिए
 ऊंची उड़ान भरे
स्वच्छंद आसमान के तले।

कभी लेे जाता है 
पहाड़ों  की हसीन वादियों में
वहां बिताए दिन
कई लोगों की संगत में।
तो कभी पहुंचा देता है मन
 उन स्कूलों की कक्षाओं में
जहां कभी अनगिनत बच्चों के साथ
घंटों गुजारे पढ़ने पढ़ाने में।

यह मेरा मन है जो करा देता है
 मुलाकात उनसे जो
 दुनिया से दूर चले गए 
किसी और ठिकाने में
और ना उम्मीद थी उनसे मिलने की
इस ज़माने में।

ना जाने क्यों लोग हो जाते हैं
बोर बाहर ना जाने में,
कभी दोस्ती तो कर के देखो
अपने मन से
जो ठान बैठा है हमें बहलाने में।

Friday, March 6, 2020

March 6 2020
Last week I began to pen  down my thoughts to mark the end of winter and welcome the spring.
but had to keep my work aside.
As my grandchild arrived 
and sat along my side.
But then when I picked up my pen again the whole scenario changed.

See what I wrote before ------;;;

Bye bye winter, take your snowy winds along
Let the quilts and blankets 
take rest for nine months long.
It's time to say adieu to
Heavy attires,coats, sweaters,
Caps scarfs,socks and gloves.
Wardrobes filled with winter stuff
are tired of managing everything rough.
And now -----------
But oh no! winter has no mood to leave
It  has knocked the doors again
I can't easily believe.
Rain pours and winds blow hard.
Sun peeped a little while and hid behind a thick cloud.

The message from above
 is clear and loud---
 Enjoy the weather cool and winds strong
before the days that are tiresome and long.
Spring won't last long.
Then the Sun will shine 
with all it's might
From heat and sweat,
there will be no respite.
Days  too hot to move around
Noise of fans , ACs, all around.
During the evenings mosquitos hold the ground.
Green peas,red carrots won't be found.

So enjoy the prolonged winter 
 and  for prolonged spring we pray.
We l know nature will have it's own way.