Today I would like to share our (Gupta family ) childhood memories of the life in the orchard at Mashobra.
Many of my relatives, friends,school and College classmates will who have visited this place in holidays or NSS Camp will be able to relate to it easily.
Others and specially who are young urban elite will get an idea of the village life in outskirts of Shimla.
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Holidays at PATENGLI
भूली बिसरी यादें
अक्सर याद आते हैं वो दिन जो हमने पटेंगली में गुज़ारे।
वह घर और बगीचा जिसे पिताजी और बड़े भाई देवजी ने अपनी मेहनत और पसीने से थे संवारे।
वह लकड़ी का चार मंजिला मकान
और सबसे ऊपर ग्लेज्ड शीशों की खिड़कियां
जिसको बनाने में बहुत दिन थे लगे।
जब भी मौका लगता,छुट्टियां होती
हम वहां जा कर रहते।
सुबह सुबह उठ कर खिड़कियां खोल कर
ताज़ी हवा और की सुंदरता का
आनंद लेते ,
पक्षियों की चहक और फूलों की खुशबू से
दिन की शरूआत करते।
मातीजी सुबह उठ कर
बैदनी जी के साथ
गाय भैंसों कि निगरानी करती
और फिर रसोई में जुट जाती।
पिताजी लंबी सैर करने जाते
झोला भर कर चिलकिट्टू लाते
और रास्ते में पानी की पाइप
बायो गैस का इंतजाम
या सड़क ठीक करवाने का प्लान बनाते,
और हम बच्चे घर की सफाई में जुट जाते।
हमाम में पानी गरम कर के सब नहाते
पिता जी की पूजा की तैयारी होती,
ताज़े फूलों की खुशबू
पूजा का कमरे में बिखर जाती।
हम खेत में जा कर लाते,
ताज़ा धनिया पुदीना,मूली और मेथी,
नाश्ते में गरम मेथी मूली के परांठे
ताज़े माखन के साथ खाते
पिताजी पीते थे ताज़ी लस्सी
घी तेल के मामले में थे वो fussy।
फिर दिन की मेहनत शुरू होती,
पिताजी हाथ में दस्ताने पहन
पेड़ों की pruning करते
कभी कभी हाथों में छाले पड़ जाते।
हम भी वहां जा कर
कटी हुई टहनियों को इकट्ठा कर के
उन्हें तरकीब से एक जगह रखते
हीरू माली आकर उन्हें उठा कर
स्टोर रूम में लेजाकर रखते।
हम स्ट्रॉबेरी के खेत में
जी भर कर खाते और शिमला के लिए भी लेे आते
मटर के साथ एक ही खेत में भुट्टे थे उगते
ग्राफ्टिंग वाले पेड़ पर एक डाली पर आडू
और दूसरी पर बादाम थे उगते।
कई तरह के सेब,नाशपाती,प्लम
अप्रिकॉट, अखरोट,परिसीमन भी लगते।
शुरू शुरू में पानी लेने बौड़ी में जाते
वीर बहादुर हमें हैं याद बहुत आते
जो चरोटू भर भर कर घर लाते।
उसके नीचे जाकर था
कल कल बहता, बड़े झरने का पानी,
जहां पर हम कपडे बाल्टी और साबुन
साथ में दबोटनी लेे कर जाते,
बड़े पत्थर पर भी पीट पीट कर कपडे धोते
साथ में ज़ोर ज़ोर से गाने गाते
फिर उन्हें निचोड़ कर सामने वाले
बगीचे में सूखने डाल देते
वहां थी आखे, कशमल और तेजफल
की झाड़ियां
हम जी भर के दातुन करते
आखे और कशमल खाते
कभी किताबें ले जा कर
छुट्टियों का काम पहाड़ी में करते।
नरगिस के फूलों का गुलदस्ता बनाते।
काम के साथ मज़े भी खूब लेते।
बहुत से रिश्तेदार,और दोस्त वहां आते
ज़िन्दगी का मज़ा दो दिन में ले जाते।
सामने था शिल्डू का गांव
जहां दिन भर रेडियो पर लगे
हिंदी गाने सुनाई देते।
कभी कभी गांव वाले गोबराई मानते
शिद्दू, पटंद्दे हलवा हमे भी खिलाते।
माता जी रसोई में चूल्हे पर दाल चढ़ाती
उनके हाथ का स्वादिष्ट था खाना,
भड्डू में पकी दाल और कढ़ी की खुशबू
मक्की की रोटी और दाल में घी का तड़का।
चावल की महक भूख को कर देती थी दुगना।
बगीचे में काम कर रहे गोरखों का
आ कर लाइन में बैठना
और हमारा उनकी प्लाटों में दाल
और मग में गुड़ की चाय डालना।
उनके साथ हंसी मज़ाक और गप्पे लड़ाना।
खाना खा कर करते थे आराम
फिर अलमारी से किताबे और नावल ले कर
पढ़ते पढ़ते हi जाती थी शाम।
वैद जी आकर करते गपशप
और हुक्के के साथ आराम।
शिमला से सामान लेकर आते लच्छी राम
त्रिशूल की ब्रेड, पेस्टरी और ज़रूरी सामान।
याद आता है देवजी का बनाया पोल्ट्री फार्म
छोटे छोटे चूजों को काट कर हरा लहसुन खिलाते छोटे छोटे संगमरमर भी उन्हें रास आते
उनकी निहार कर मिलता बहुत आराम।
याद है बड़े वाले हॉल में थी अलमारियां,
जिसमें होती प्रूनिंग की कैंचियां
और कई औजार और आरियां।
पिता जी के कमरे की स्पेशल अलमारियां
जिसमें थी दवाइयां और चूर्ण की गोलियां।
खांसी होती तो लगता था throat paint
चोट लगती थी तो लगती थी टिंक्चर आयोडीन
पेट दर्द के लिए कामधेनु जल।
मगर सेहत का राज था
ताज़े सब्जी और फल।
हीरू जी के कमरे में रखा था टेलीफोन,
सबसे बात करके मिलता था सुकून।
कभी कभी ओवन में
बनाते हम केक और नानखताई
नवीन जी ने वहां हम
बांसुरी की बहुत धुनें हैं सुनाई।
रेडियो लगा कर खबरें हैं सुनाई।
रसोई की छत पर बैठ कर
मक्की चना मूंगफली है खूब खाई।
कोदरू का घर उनके दंगर
और खलिहान की भी याद है आयी।
जब इकठ्ठे होते तो क्रिक्रेट भी खेलते थे हम।
कभी चाईनीज़ कभी लूडो खेलते थे हम
शरारतें भी करते मगर मेहमाननवाजी में भी ना थे कम।
बरामदे से दूरबीन ले कर
देखते थे हम लक्कड़ बाज़ार का घर
सामने था मझधार का गांव
सुंदर सुंदर श्यू शेप के खेत,
और लच्छी राम जी का घर।
सर्दी की रातों में हवा की साएं साएं
और रात को झरने की आवाज़
सुन कर लगता था डर।
याद आते है अब वह फूल पौधे और फल
वह पगडंडियां और वो घर
वह घर जिसमें बाहर था गांव लेकिन अंदर से था शहर
टीवी, सोफ़ा, पलंग
और नए बाथरूम में चमकते नल।
याद आता है तारापुर
फरीदकोट का हाता और
घर से तलाई तक
बीस मिनट की चढ़ाई।
वहां बस की इंतज़ार तक चाय और पकोड़े खाना
बस ना मिले तो
बर्फ पर चल कर शिमला पैदल जाना।
बीत गए वो दिन बदल गया ज़माना
नहीं होता अब हमारा आना जाना।
ना चढ़ेंगे वह चढ़ाई,ना चूल्हे पर कढ़ाई।
दबी दबी सी हैं ख्वाहिशें मन में रह गई।
सुना है हमारे घर के सामने अब है बन गया
होटल fortune select cedar trail
ज़माना है नया और माहौल भी नया।
Many of my relatives, friends,school and College classmates will who have visited this place in holidays or NSS Camp will be able to relate to it easily.
Others and specially who are young urban elite will get an idea of the village life in outskirts of Shimla.
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Holidays at PATENGLI
भूली बिसरी यादें
अक्सर याद आते हैं वो दिन जो हमने पटेंगली में गुज़ारे।
वह घर और बगीचा जिसे पिताजी और बड़े भाई देवजी ने अपनी मेहनत और पसीने से थे संवारे।
वह लकड़ी का चार मंजिला मकान
और सबसे ऊपर ग्लेज्ड शीशों की खिड़कियां
जिसको बनाने में बहुत दिन थे लगे।
जब भी मौका लगता,छुट्टियां होती
हम वहां जा कर रहते।
सुबह सुबह उठ कर खिड़कियां खोल कर
ताज़ी हवा और की सुंदरता का
आनंद लेते ,
पक्षियों की चहक और फूलों की खुशबू से
दिन की शरूआत करते।
मातीजी सुबह उठ कर
बैदनी जी के साथ
गाय भैंसों कि निगरानी करती
और फिर रसोई में जुट जाती।
पिताजी लंबी सैर करने जाते
झोला भर कर चिलकिट्टू लाते
और रास्ते में पानी की पाइप
बायो गैस का इंतजाम
या सड़क ठीक करवाने का प्लान बनाते,
और हम बच्चे घर की सफाई में जुट जाते।
हमाम में पानी गरम कर के सब नहाते
पिता जी की पूजा की तैयारी होती,
ताज़े फूलों की खुशबू
पूजा का कमरे में बिखर जाती।
हम खेत में जा कर लाते,
ताज़ा धनिया पुदीना,मूली और मेथी,
नाश्ते में गरम मेथी मूली के परांठे
ताज़े माखन के साथ खाते
पिताजी पीते थे ताज़ी लस्सी
घी तेल के मामले में थे वो fussy।
फिर दिन की मेहनत शुरू होती,
पिताजी हाथ में दस्ताने पहन
पेड़ों की pruning करते
कभी कभी हाथों में छाले पड़ जाते।
हम भी वहां जा कर
कटी हुई टहनियों को इकट्ठा कर के
उन्हें तरकीब से एक जगह रखते
हीरू माली आकर उन्हें उठा कर
स्टोर रूम में लेजाकर रखते।
हम स्ट्रॉबेरी के खेत में
जी भर कर खाते और शिमला के लिए भी लेे आते
मटर के साथ एक ही खेत में भुट्टे थे उगते
ग्राफ्टिंग वाले पेड़ पर एक डाली पर आडू
और दूसरी पर बादाम थे उगते।
कई तरह के सेब,नाशपाती,प्लम
अप्रिकॉट, अखरोट,परिसीमन भी लगते।
शुरू शुरू में पानी लेने बौड़ी में जाते
वीर बहादुर हमें हैं याद बहुत आते
जो चरोटू भर भर कर घर लाते।
उसके नीचे जाकर था
कल कल बहता, बड़े झरने का पानी,
जहां पर हम कपडे बाल्टी और साबुन
साथ में दबोटनी लेे कर जाते,
बड़े पत्थर पर भी पीट पीट कर कपडे धोते
साथ में ज़ोर ज़ोर से गाने गाते
फिर उन्हें निचोड़ कर सामने वाले
बगीचे में सूखने डाल देते
वहां थी आखे, कशमल और तेजफल
की झाड़ियां
हम जी भर के दातुन करते
आखे और कशमल खाते
कभी किताबें ले जा कर
छुट्टियों का काम पहाड़ी में करते।
नरगिस के फूलों का गुलदस्ता बनाते।
काम के साथ मज़े भी खूब लेते।
बहुत से रिश्तेदार,और दोस्त वहां आते
ज़िन्दगी का मज़ा दो दिन में ले जाते।
सामने था शिल्डू का गांव
जहां दिन भर रेडियो पर लगे
हिंदी गाने सुनाई देते।
कभी कभी गांव वाले गोबराई मानते
शिद्दू, पटंद्दे हलवा हमे भी खिलाते।
माता जी रसोई में चूल्हे पर दाल चढ़ाती
उनके हाथ का स्वादिष्ट था खाना,
भड्डू में पकी दाल और कढ़ी की खुशबू
मक्की की रोटी और दाल में घी का तड़का।
चावल की महक भूख को कर देती थी दुगना।
बगीचे में काम कर रहे गोरखों का
आ कर लाइन में बैठना
और हमारा उनकी प्लाटों में दाल
और मग में गुड़ की चाय डालना।
उनके साथ हंसी मज़ाक और गप्पे लड़ाना।
खाना खा कर करते थे आराम
फिर अलमारी से किताबे और नावल ले कर
पढ़ते पढ़ते हi जाती थी शाम।
वैद जी आकर करते गपशप
और हुक्के के साथ आराम।
शिमला से सामान लेकर आते लच्छी राम
त्रिशूल की ब्रेड, पेस्टरी और ज़रूरी सामान।
याद आता है देवजी का बनाया पोल्ट्री फार्म
छोटे छोटे चूजों को काट कर हरा लहसुन खिलाते छोटे छोटे संगमरमर भी उन्हें रास आते
उनकी निहार कर मिलता बहुत आराम।
याद है बड़े वाले हॉल में थी अलमारियां,
जिसमें होती प्रूनिंग की कैंचियां
और कई औजार और आरियां।
पिता जी के कमरे की स्पेशल अलमारियां
जिसमें थी दवाइयां और चूर्ण की गोलियां।
खांसी होती तो लगता था throat paint
चोट लगती थी तो लगती थी टिंक्चर आयोडीन
पेट दर्द के लिए कामधेनु जल।
मगर सेहत का राज था
ताज़े सब्जी और फल।
हीरू जी के कमरे में रखा था टेलीफोन,
सबसे बात करके मिलता था सुकून।
कभी कभी ओवन में
बनाते हम केक और नानखताई
नवीन जी ने वहां हम
बांसुरी की बहुत धुनें हैं सुनाई।
रेडियो लगा कर खबरें हैं सुनाई।
रसोई की छत पर बैठ कर
मक्की चना मूंगफली है खूब खाई।
कोदरू का घर उनके दंगर
और खलिहान की भी याद है आयी।
जब इकठ्ठे होते तो क्रिक्रेट भी खेलते थे हम।
कभी चाईनीज़ कभी लूडो खेलते थे हम
शरारतें भी करते मगर मेहमाननवाजी में भी ना थे कम।
बरामदे से दूरबीन ले कर
देखते थे हम लक्कड़ बाज़ार का घर
सामने था मझधार का गांव
सुंदर सुंदर श्यू शेप के खेत,
और लच्छी राम जी का घर।
सर्दी की रातों में हवा की साएं साएं
और रात को झरने की आवाज़
सुन कर लगता था डर।
याद आते है अब वह फूल पौधे और फल
वह पगडंडियां और वो घर
वह घर जिसमें बाहर था गांव लेकिन अंदर से था शहर
टीवी, सोफ़ा, पलंग
और नए बाथरूम में चमकते नल।
याद आता है तारापुर
फरीदकोट का हाता और
घर से तलाई तक
बीस मिनट की चढ़ाई।
वहां बस की इंतज़ार तक चाय और पकोड़े खाना
बस ना मिले तो
बर्फ पर चल कर शिमला पैदल जाना।
बीत गए वो दिन बदल गया ज़माना
नहीं होता अब हमारा आना जाना।
ना चढ़ेंगे वह चढ़ाई,ना चूल्हे पर कढ़ाई।
दबी दबी सी हैं ख्वाहिशें मन में रह गई।
सुना है हमारे घर के सामने अब है बन गया
होटल fortune select cedar trail
ज़माना है नया और माहौल भी नया।
