मैं और मेरा अंतर्मन
घर की चारदीवारी में
कभी अकेलापन महसूस न होने देता
यह मेरा में है जो कभी
मायूस नहीं होने देता।
ना ज़रूरत है टीवी की
ना दोस्तों की महफ़िल की
इस मन के साथी ने
जाने क्या जादू चलाया है
मालूम नहीं कब ढल जाता है दिन
और हो जाती है शाम।
काम चाहे कुछ भी करूं
हाथ में ऊन और सिलाई लूं
या झाड़ू पोचा सफाई करूं
खाना बनाऊं या बर्तन घिसाई करूं
यह मन मुझको साथ लिए
ऊंची उड़ान भरे
स्वच्छंद आसमान के तले।
कभी लेे जाता है
पहाड़ों की हसीन वादियों में
वहां बिताए दिन
कई लोगों की संगत में।
तो कभी पहुंचा देता है मन
उन स्कूलों की कक्षाओं में
जहां कभी अनगिनत बच्चों के साथ
घंटों गुजारे पढ़ने पढ़ाने में।
यह मेरा मन है जो करा देता है
मुलाकात उनसे जो
दुनिया से दूर चले गए
किसी और ठिकाने में
और ना उम्मीद थी उनसे मिलने की
इस ज़माने में।
ना जाने क्यों लोग हो जाते हैं
बोर बाहर ना जाने में,
कभी दोस्ती तो कर के देखो
अपने मन से
जो ठान बैठा है हमें बहलाने में।
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